जिन राहों पे एक उमर तेरे साथ रहा हूँ
कुछ रोज़ से वो रास्ते सुनसान बहोत हैं
मिल जाओ कभी लौट के आओ न शायद
कमज़ोर हूँ मैं राह में तूफ़ान बहोत हैं
एक तुम ही नहीं मेरी जुदाई में परेशां
हम भी तेरी चाह में वीरान बहोत हैं
एक तर्क-ए-वफ़ा में उसे कैसे भूला दूँ
मुझ पर अभी उस शख्स के एहसान बहोत हैं
भर आई न आँखें तो मैं एक बात बताऊँ
अब तुझसे बिछड़ जाने के इमकान बहोत हैं..
कुछ रोज़ से वो रास्ते सुनसान बहोत हैं
मिल जाओ कभी लौट के आओ न शायद
कमज़ोर हूँ मैं राह में तूफ़ान बहोत हैं
एक तुम ही नहीं मेरी जुदाई में परेशां
हम भी तेरी चाह में वीरान बहोत हैं
एक तर्क-ए-वफ़ा में उसे कैसे भूला दूँ
मुझ पर अभी उस शख्स के एहसान बहोत हैं
भर आई न आँखें तो मैं एक बात बताऊँ
अब तुझसे बिछड़ जाने के इमकान बहोत हैं..
No comments:
Post a Comment