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Monday 25 July 2016

बहाना कोई तो आखिर बना कर वो गया होगा..

बहाना कोई तो आखिर बना कर वो गया होगा,
कई मजबूरियाँ अपनी बता कर वो गया होगा,
उसे तुम इश्क का सजदा समझ लेना न गलती से
किसी मतलब से अपना सर झुका कर वो गया होगा,
था मिलना दोस्त से उसको बताओ तो ज़रा हमको
भला क्यों पीठ में खंजर छुपा कर वो गया होगा,
मेरी यादों से बचने का यही बस इक तरीका था
मेरे लिक्खे हुए सब खत जला कर वो गया होगा,
मैं अक्सर सोचता हूँ कौन मेरा खैर ख़्वाह होगा,
खुदा के दर मेरी खातिर दुआ कर वो गया होगा,
समझ के अपना बंदा तुम रहम उस पर फरमाओगे
इसी उम्मीद में तुझको खुदा कर वो गया होगा,
उसे बाजार जा कर बेचनी थी गैरतें अपनी,
नज़र अपनी मगर खुद से चुरा कर वो गया होगा,
सुना है आज बेमौसम दिलों पर बिजलियाँ टूटी,
हसीं चेहरे से परदे को उठा कर वो गया होगा,
गया है रूठ कर इस ज़िन्दगी से तो यकीं मानो,
हज़ारों मर्तबा उसको मना कर वो गया होगा....

क्यों सुकूँ मिलता नही इस ज़माने में..

लुट गई दुनिया मुहब्ब्त के फ़साने में,
हम तमाशा बन गये जुल्मी ज़माने में,
पूछ ही लेता हाल-ए-दिल तो सुकूँ मिलता,
वो कंही मशरूफ था फिर दिल लगाने में,
गम में डूबा आज कोई दिल-जला पूछे,
क्यों सुकूँ मिलता नही इस ज़माने में...

Friday 15 July 2016

तुम्हारे बस में अगर हो तो..

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे,
मैं इक शाम चूरा लूँ अगर बुरा न लगे,
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें,
तुम्हें भूलाने में शायद मुझे ज़माना लगे,

हमारे प्यार से जलने लगी है इक दुनिया,
दुआ करो किसी दुश्मन की बद्दुआ न लगे
ना जाने क्या है उसकी बेबाक आँखों में
वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा न लगे

जो डूबना है तो इतने सकून से डुबो
के आस-पास की लहरों को भी पता न लगे
हो जिस अदा से मेरे साथ बेवफाई कर
के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा न लगे

वो फूल जो मेरे दामन से हो गया मंसूब
खुदा करे उसे बाज़ार की हवा न लगे
तुम आँख मूंद के पी जाओ ज़िन्दगी कैसर
के इक घूँट में शायद ये बद-मज़ा न लगे..

आँखों में समां जाओ, इस दिल में रहा करना..

Sunday 26 June 2016

आँख से दूर न हो..

आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुजरता है गुजर जायेगा

इतना मायूस न हो खल्वत-ए-गम से अपनी
तू कभी खुद को भी देखेगा तो डर जायेगा

डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा

जिंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला
तेरी बख्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुःख है क़यामत का 'फ़राज़'
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा।।

मोहब्बत..

Saturday 4 June 2016

तेरी जुल्फों के बिखरने का सबब है कोई..

तेरी जुल्फों के बिखरने का सबब है कोई
आँख कहती है तेरे दिल तलब है कोई

आँच आती है तेरे जिस्म की उर्यानी से
पैरहन है कि  सुलगती हुई शब है कोई

होश उड़ने लगीं फिर चाँद की ठंडी किरणें
तेरी बस्ती में हूँ या ख्वाब-ए-तरब है कोई

गीत बुनती है तेरे शहर की भरपूर हवा
अजनबी मैं ही नहीं तु भी अजब है कोई

लिए जाती है किसी ध्यान की लहरे मोहसिन
दूर तक सिलसिला-ए-ततक-ए-तरब है कोई..

अपनी धून में रहता हूँ..

अपनी धून में रहता हूँ
मैं   भी   तेरे  जैसा  हूँ
ओ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तन्हा हूँ

तेरी गली में सारा दिन
दुःख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाये कौन
मैं  तेरा  आइना  हूँ

मेरा दिया जलाए कौन
मैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तेरे सिवा मुझे पहने कौन
मैं तेरे तन का कपडा हूँ

तु जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रास्ता हूँ

आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ
अपनी लहर है अपना रोग
दरिया हूँ और प्यासा हूँ..

ओंझल सही निगाह से, डूबा नहीं हूँ मैं..

ओंझल सही निगाह से, डूबा नहीं हूँ मैं
ऐ रात ख़बरदार के हारा नहीं हूँ मैं
दरपेश सुबह-शाम यही कश्मकश है अब
उसका बनूं मैं कैसे के अपना नहीं हूँ मैं

मुझको फरिश्ता होने का दावा नहीं मगर
जितना बुरा समझते हो, उतना नहीं हूँ मैं
इस तरह फेर-फेर के बातें न कीजिये
लहजे का रुख समझता हूँ बच्चा नहीं हूँ मैं

मुमकिन नहीं है मुझ से ये तर्ज़-ए-मुनाफकत
दुनिया तेरे मिज़ाज का बन्दा नहीं हूँ मैं..

भूली बिसरी हुई यादों में..

भूली बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी
डूबती शाम के अतराफ़ चमक है कितनी
मंज़र-ए-गुल तो बस एक पल के लिए ठहरा था
आती जाती हुई सांसों में महक है कितनी

गिर के टूटा नहीं शायद वो किसी पत्थर पर
उसकी आवाज़ में ताबींदा खनक है कितनी
अपनी हर बात में वो भी है हसीनों जैसा
उस सरापे में मगर नोक पलक है कितनी

जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तनहा
मुझ में उन टूटते पत्तों की झलक है कितनी।।

Friday 27 May 2016

आज फिर कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये..

आज फिर कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये
तु ही मेरी सुबह, तु ही मेरी शाम हो जाये
तुझसे क्या रिश्ता है मेरा, ना जानू मैं
पर तु हुकुम तो कर, दिल तेरा ग़ुलाम हो जाये
     दो पल का मिलना भी कोई मिलना है हुज़ूर
     हामी तो भरो, मिलने का इंतजाम हो जाये
     तेरी आँखों में डूब जाने को जी करता है
     कभी आँखों से पिलाओ, ऐसा भी कोई जाम हो जाये
मैं ग़ज़ल कहूँ और तुम मुकरर मुकरर कहो
तेरी मुस्कराहट ही मेरी ग़ज़ल का इनाम हो जाये
तेरे हुस्न की तारीफ करूँ तो वक़्त थम जाये
    तेरी खूबसूरती के आगे मेरा हर लफ्ज़ नीलाम हो जाये
    "मोहसिन" सच कहता है बहोत हसींन हो तुम
    ज़रा सा शरमा जाओ तो बेचारे दिल को आराम हो जाये।। 

Thursday 26 May 2016

आँखों में समां जाओ, इस दिल में रहा करना..

आँखों में समां जाओ, इस दिल में रहा करना
तारों में हंसा करना, फूलों में खिल करना
      जब से तुम्हें देखा है, जब से तुम्हें पाया है
      कुछ होश नहीं मुझको, इक नशा सा छाया है
      अब बात जो करनी हो, आँखों से कहा करना
ऐ काश! धड़कता दिल, कुछ देर ठहर जाये
ये रात मोहब्बत की, यूँ ही न गुज़र जाये
बाक़ी है अभी तुम पर, ये जान फ़िदा करना
आँखों में समां जाओ, इस दिल में रहा करना
     किस्मत न दिखाए अब, घड़ियाँ हमें फुरक़त की
     हर रात यूँ ही चमके, तक़दीर मोहब्बत की
     ऐ चाँद सितारों, तुम मिल-जुल के दुआ करना
    आँखों में समां जाओ, इस दिल में रहा करना।।

शाम से आँख में नमीं सी है..

शाम से आँख में नमीं सी है
आज फिर आपकी कमी सी है

दफ़न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
उस की आदत भी आदमी सी है

शाम से आँख में नमीं सी है
आज फिर आपकी कमी सी है..

Wednesday 25 May 2016

मोहब्बत की मिन्नतें..

तुम्हारी आँखों में अपने प्यार की चाँदनी बसा लूँ
            ऑंखें बंद करो तो मुझे ही पाओ

सितारों की महफ़िल तुम्हारे लिए सजाऊँ
नज्में और ग़ज़लें फिर हमारी प्यार की हो

जुल्फें अपनी तुम पर बिछाऊँ इस क़दर
सूरज भी हैरां कि उसकी धुप का असर न हो

         परवाना भी शमा पे जलना छोड़ दे
मोहब्बत देख मेरी उसकी शिद्दत में ताक़त न हो

        मेरे लबों का शहद छुए इस तरह
किसी और जायके का फिर लुत्फ़ न हो

       एक ही ख्वाब बस एक ख्वाहिश
हर सेहर तुमसे हबीब हर शाम तुम्हारी आगोश में हो

मेरी मोहब्बत की मिन्नतें सुन ले ऐ मेरे रक़ीब
फिर किसी और दुआ पे तेरी नज़र न हो..

खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती..

दिल में न हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी खफा हैं
हर एक से अपनी भी तबियत नहीं मिलती

देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिस से तेरी सूरत नहीं मिलती

हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती..

Monday 23 May 2016

तो लगता है कि तुम हो..

आहट सी कोई आये तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराये तो लगता है कि तुम हो

जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो

संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो

जब रात गए कोई कोई किरण मेरे बराबर
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो..

Sunday 22 May 2016

मोहब्बत..

कभी ज़िन्दगी का नाम है मोहब्बत
कभी मौत का पैग़ाम है मोहब्बत

कभी मोहब्बत से मिलती है ख़ुशी
कभी ग़म की शाम है मोहब्बत

कभी आंसुओं का रेला है मोहब्बत
कभी हंसी का जाम है मोहब्बत

कभी है है मोहब्बत दिल की जलन
कभी दिल का अरमान है मोहब्बत

कभी मोहब्बत है मिलान का रूप
कभी तन्हाई की तरह बेनाम है मोहब्बत

कभी मोहब्बत शहनाईयों की घड़ी
कभी रुसवाई का अंजाम है मोहब्बत

कभी मोहब्बत से है ज़माने में इज्जत
कभी बेशर्मी का इल्जाम है मोहब्बत

     कभी मोहब्बत है बेनाम ज़िन्दगी
कभी ज़िन्दगी कहती है मेरा नाम है मोहब्बत।।

एक तुम ही नहीं मेरी जुदाई में परेशां..

जिन राहों पे एक उमर तेरे साथ रहा हूँ
कुछ रोज़ से वो रास्ते सुनसान बहोत हैं

मिल जाओ कभी लौट के आओ न शायद
कमज़ोर हूँ मैं राह में तूफ़ान बहोत हैं

एक तुम ही नहीं मेरी जुदाई में परेशां
हम भी तेरी चाह में वीरान बहोत हैं

एक तर्क-ए-वफ़ा में उसे कैसे भूला दूँ
मुझ पर अभी उस शख्स के एहसान बहोत हैं

भर आई न आँखें तो मैं एक बात बताऊँ
अब तुझसे बिछड़ जाने के इमकान बहोत हैं..

Saturday 21 May 2016

अपना बना ले मुझको..

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा दिली मार ना डाले मुझको

खुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तु ने अगर मेरे हवाले मुझको

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ
शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको।।

Friday 20 May 2016

तेरे नाम कर दूँ..

अपनी ज़िन्दगी की हर शाम तेरे नाम कर दूँ
तेरी ही आँखों का जाम तेरे नाम कर दूँ

मैं डूब जाऊं तेरी इन झील सी गहरी आँखों में
फिर अपनी बरबादी का इल्जाम तेरे नाम कर दूँ

मैं अपनी रूह को तेरे वजूद में भर दूँ
फिर अपनी जात अपना पयाम तेरे नाम कर दूँ

तु मुझे मोहब्बत का आग़ाज़ दे सनम
मैं अपने प्यार का अंजाम तेरे नाम कर दूँ

मोहब्बतों के क़सीदे लिखूँ तेरी सना में
हज़ारों प्यार के पैग़ाम तेरे नाम कर दूँ

हो जिसका जिक्र मोहब्बत की हर कहानी में
इक ऐसा प्यार का पैग़ाम तेरे नाम कर दूँ..

Thursday 12 May 2016

मुझे यूँ भी तो नसीब हो..

कोई रात मेरे आशना, मुझे यूँ भी तो नसीब हो
ना रहे खयाल लिबास का, वो इतना मेरे करीब हो

बदन की गर्म आंच से मेरी आरज़ू को आग दे
मेरा जोश बहक उठे, मेरा हाल भी अजीब हो

तेरे चाशनी वजूद का सारा रस मैं चुरा लूँ
फिर तु ही मेरा मर्ज़ हो, और तु ही मेरा तबीब हो..

हुस्न को चाँद, जवानी को कँवल कहते हैं..

हुस्न को चाँद, जवानी को कँवल कहते हैं
उनकी सूरत नज़र आए तो ग़ज़ल कहते हैं

उफ्फ़! वो मरमर से तराशा हुआ शफाफ बदन
देखने वाले उसे ताजमहल कहते हैं

पड़ गई पाँव में तक़दीर की ज़ंजीर तो क्या
हम तो उसको भी तेरी जुल्फ़ का बाल कहते हैं

मुझको मालूम नहीं इसके सिवा कुछ भी मोहसिन
जो सदी वस्ल में गुज़रे उसे पल कहते हैं..