ओंझल सही निगाह से, डूबा नहीं हूँ मैं
ऐ रात ख़बरदार के हारा नहीं हूँ मैं
दरपेश सुबह-शाम यही कश्मकश है अब
उसका बनूं मैं कैसे के अपना नहीं हूँ मैं
मुझको फरिश्ता होने का दावा नहीं मगर
जितना बुरा समझते हो, उतना नहीं हूँ मैं
इस तरह फेर-फेर के बातें न कीजिये
लहजे का रुख समझता हूँ बच्चा नहीं हूँ मैं
मुमकिन नहीं है मुझ से ये तर्ज़-ए-मुनाफकत
दुनिया तेरे मिज़ाज का बन्दा नहीं हूँ मैं..
ऐ रात ख़बरदार के हारा नहीं हूँ मैं
दरपेश सुबह-शाम यही कश्मकश है अब
उसका बनूं मैं कैसे के अपना नहीं हूँ मैं
मुझको फरिश्ता होने का दावा नहीं मगर
जितना बुरा समझते हो, उतना नहीं हूँ मैं
इस तरह फेर-फेर के बातें न कीजिये
लहजे का रुख समझता हूँ बच्चा नहीं हूँ मैं
मुमकिन नहीं है मुझ से ये तर्ज़-ए-मुनाफकत
दुनिया तेरे मिज़ाज का बन्दा नहीं हूँ मैं..
No comments:
Post a Comment