Sunday 26 June 2016

आँख से दूर न हो..

आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुजरता है गुजर जायेगा

इतना मायूस न हो खल्वत-ए-गम से अपनी
तू कभी खुद को भी देखेगा तो डर जायेगा

डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा

जिंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला
तेरी बख्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुःख है क़यामत का 'फ़राज़'
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा।।

मोहब्बत..

काश कोई ऐसी बारिश हो

जब भी बारिश होती है और मेरी ऑंखें देखती हैं
बारिश में धुलती चीज़ों को तो मेरा दिल तड़प कर सोंचता है

ऐ खुदा !

काश कोई ऐसी बारिश हो जिसमें धूल जाएँ दिलों के मैल
और हर चेहरा फिर से निखरा-निखरा हो जाये।।

Friday 24 June 2016

"पहिला पाऊस"

थेंब आशेचा दिलास्याचा
थेंब पहिल्या पावसाचा
हसती फुलं डोलत्या फांद्या
संगीत भिजल्या पानांचा

आनंदाश्रू नयनी तयाच्या
आभार मानतो शेतकरी
पांग फेडले जन्माचे जणू
हरिनाम जापती वारकरी

धावतो चिखल उडवत
भिजल्या अंगाने लेकरू
खुट्या बांधली माय म्हणे
कार्ट्याचे तरी काय करू.

पुन्हा मी माझा..

Wednesday 8 June 2016

तू सोबत असताना..

तू सोबत असताना,
आयुष्य किती छान वाटतं..

उनाड मोकळं,
एक रान वाटतं..

सदैव मनात जपलेलं,
पिंपळपान वाटतं..

कधी बेधुंद,
कधी बेभान वाटतं..

खरंच
तू सोबत असताना,
आयुष्य किती छान वाटतं..

मनात मी कुठेतरी..

नजरेला नजर भिडली असताना
अचानक तुझी नजर का झुकावी

           संवादाद मग्न असताना
           शब्दांनी तुझी साथ का सोडावी

आत्ताच का त्या बेभान वाऱ्याला कळ यावी
की त्याने ती केसांची लट,
तुझ्या चेहऱ्यावर अलगद लहरावी


तू  "इश्श्य" म्हणून,
        या क्षणाला स्त्री वरचा दागिना बनवावं
टाचणीच्या टोका एवढा त्या क्षणाला
        मनात मी कुठेतरी दाटून ठेवावं..

Saturday 4 June 2016

लड़का-लड़की

लड़की: तुमसे पहले भी एक बॉयफ्रेंड था मेरा।

लड़का: कोई बात नहीं मैं तीन भाईयों में सबसे छोटा हूँ।

लड़की: तो?

लड़का: Second Hand चीज़ों की आदत है।

तेरी जुल्फों के बिखरने का सबब है कोई..

तेरी जुल्फों के बिखरने का सबब है कोई
आँख कहती है तेरे दिल तलब है कोई

आँच आती है तेरे जिस्म की उर्यानी से
पैरहन है कि  सुलगती हुई शब है कोई

होश उड़ने लगीं फिर चाँद की ठंडी किरणें
तेरी बस्ती में हूँ या ख्वाब-ए-तरब है कोई

गीत बुनती है तेरे शहर की भरपूर हवा
अजनबी मैं ही नहीं तु भी अजब है कोई

लिए जाती है किसी ध्यान की लहरे मोहसिन
दूर तक सिलसिला-ए-ततक-ए-तरब है कोई..

अपनी धून में रहता हूँ..

अपनी धून में रहता हूँ
मैं   भी   तेरे  जैसा  हूँ
ओ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तन्हा हूँ

तेरी गली में सारा दिन
दुःख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाये कौन
मैं  तेरा  आइना  हूँ

मेरा दिया जलाए कौन
मैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ
तेरे सिवा मुझे पहने कौन
मैं तेरे तन का कपडा हूँ

तु जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रास्ता हूँ

आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ
अपनी लहर है अपना रोग
दरिया हूँ और प्यासा हूँ..

ओंझल सही निगाह से, डूबा नहीं हूँ मैं..

ओंझल सही निगाह से, डूबा नहीं हूँ मैं
ऐ रात ख़बरदार के हारा नहीं हूँ मैं
दरपेश सुबह-शाम यही कश्मकश है अब
उसका बनूं मैं कैसे के अपना नहीं हूँ मैं

मुझको फरिश्ता होने का दावा नहीं मगर
जितना बुरा समझते हो, उतना नहीं हूँ मैं
इस तरह फेर-फेर के बातें न कीजिये
लहजे का रुख समझता हूँ बच्चा नहीं हूँ मैं

मुमकिन नहीं है मुझ से ये तर्ज़-ए-मुनाफकत
दुनिया तेरे मिज़ाज का बन्दा नहीं हूँ मैं..

भूली बिसरी हुई यादों में..

भूली बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी
डूबती शाम के अतराफ़ चमक है कितनी
मंज़र-ए-गुल तो बस एक पल के लिए ठहरा था
आती जाती हुई सांसों में महक है कितनी

गिर के टूटा नहीं शायद वो किसी पत्थर पर
उसकी आवाज़ में ताबींदा खनक है कितनी
अपनी हर बात में वो भी है हसीनों जैसा
उस सरापे में मगर नोक पलक है कितनी

जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तनहा
मुझ में उन टूटते पत्तों की झलक है कितनी।।