Friday 27 May 2016

आज फिर कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये..

आज फिर कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये
तु ही मेरी सुबह, तु ही मेरी शाम हो जाये
तुझसे क्या रिश्ता है मेरा, ना जानू मैं
पर तु हुकुम तो कर, दिल तेरा ग़ुलाम हो जाये
     दो पल का मिलना भी कोई मिलना है हुज़ूर
     हामी तो भरो, मिलने का इंतजाम हो जाये
     तेरी आँखों में डूब जाने को जी करता है
     कभी आँखों से पिलाओ, ऐसा भी कोई जाम हो जाये
मैं ग़ज़ल कहूँ और तुम मुकरर मुकरर कहो
तेरी मुस्कराहट ही मेरी ग़ज़ल का इनाम हो जाये
तेरे हुस्न की तारीफ करूँ तो वक़्त थम जाये
    तेरी खूबसूरती के आगे मेरा हर लफ्ज़ नीलाम हो जाये
    "मोहसिन" सच कहता है बहोत हसींन हो तुम
    ज़रा सा शरमा जाओ तो बेचारे दिल को आराम हो जाये।। 

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