कोई ग़ज़ल सुना कर क्या करना
यूँ बात बढा कर क्या करना
तुम मेरे थे तुम मेरे हो
दुनिया को बता कर क्या करना
तुम अहद निभाओ चाहत से
कोई रस्म निभा कर क्या करना
तुम ख़फ़ा भी अच्छे लगते हो
फिर तुम को मना कर क्या करना
तेरे दर पे आ के बैठे हैं
अब घर भी जा कर क्या करना
दिन याद से अच्छा गुज़रेगा
फिर तुम को भूल कर क्या करना..?
यूँ बात बढा कर क्या करना
तुम मेरे थे तुम मेरे हो
दुनिया को बता कर क्या करना
तुम अहद निभाओ चाहत से
कोई रस्म निभा कर क्या करना
तुम ख़फ़ा भी अच्छे लगते हो
फिर तुम को मना कर क्या करना
तेरे दर पे आ के बैठे हैं
अब घर भी जा कर क्या करना
दिन याद से अच्छा गुज़रेगा
फिर तुम को भूल कर क्या करना..?
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