Sunday 17 April 2016

रात-दिन का हिसाब हो जाऊँ..

तू मुझे नींद में बुला तो सही
क्या पता तेरा ख़्वाब हो जाऊँ,.,
दिल की नज़रों से गर पढ़े मुझको
आसमानी किताब हो जाऊँ,.,
अपने होंठों से मुझको चख तो जरा
मैं भी शायद शराब हो जाऊँ,.,
छोड़ कर दिल, दिमाग की मानूं
मैं भी हाज़िर जवाब हो जाऊँ,.,
उम्र मुझको बना ले गर अपनी
रात-दिन का हिसाब हो जाऊँ..

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