Wednesday 11 May 2016

सांसों की हरारत से पिघल जाने का मौसम..

सांसों की हरारत से पिघल जाने का मौसम
आया है तेरी आँच में जल जाने का मौसम

हम को नहीं मालूम था है इश्क का आग़ाज़
यादों में कहीं दूर निकल जाने का मौसम

लगता है के चेहरे पे तेरे ठहर गया है
यक्-लख्त कभी रंग बदल जाने का मौसम

यह शहर-ए-तमन्ना भी अनोखा है के इस में
बरसात भी रहता है थल जाने का मौसम

चेहरे पे अगरचे है मेरे सुबह का उजाला
आँखों में मगर शाम का ढल जाने का मौसम।।

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